Tuesday, May 22, 2007

दूसरी शुरुआत ...कुछ नयी बात


दूसरी शुरुआत/कुछ नयी बात। जब यूं कहा तो एकबारगी ऐसा लगा कि मैं शायर हो गया।
इस खुशफहमी को एक ज़ोर कि लात पडी रमलाल्जी के गधे के किस्से से। अब आप पूछोगे कि यह आदमीयों कि ज़मात मे गधा कहा से आ गया?
इसका जवाब अपने रामलाल जी शरमाते-लजाते-मुस्कराते हुए देते हैं। कहते है " अजी गधा भी तो आख़िर आदमी होता है।" तो हाज़रीन रामलाल जी का गधा कोई मामूली गधा नही-वो तो शेर है अपने दरवाज़े का, अब चुंकि राम्लाल्जी के लिए बकौल शायर आस्मान छत और धरती ठिकाना है, गधे को दरवाज़े कम ही मिलते हैं और बेचारा अपनी मनमोहन जी जैसे शेर होके भी गधे वालो काम चलाऊ सर्कार कि जिन्दगी जीं रहा है।
लेकिन इन सारी बातों का शायरी से क्या वास्ता? तो जनाब शायरी से मेरा ही कौन सा बहुत वास्ता है, मैं तो बस सुहाने मौसम और भीगी भीगी शाम के लपेटे मे आ कर भावुक हो उठा था, जैसे जंगल का मोर हो उठता है।
अब चुंकि कोई मोरनी दूर दूर तक रेंज मे नही, वापस अपनी इंसानी औकात मे आ रह हूँ शनैः-शनैः ।
शनैः-शनैः ही क्यों? बुद्धै: बुद्धै: क्यों नही? जनाब बुध्हि होती तो भीगी भीगी शाम मे राम लालजी के गधे कि चर्चा होती?
कुछ यही हाल अपने देश का है। अब देखिए कैसे तीन साल हो गए अपनी सरकार को, लोग भूखो मर रहे है हैं, रोज़ बम-गोलियों से त्यौहार मन रहे है, और अने रामलालजी परेशान है कि उनके गधे को एतिहासिक पिछड़े पन के लिए आराक्षण क्यों नही मिलता। उनके गधे को कबतक मंत्रि-मंडल से बाहर रखा जाएगा? वे क्रोधित हो कर पूछते हैं। भाई मैं उनके साथ हूँ-अब क्या पता सोनिया ली के दरवाज़े जा कर अपना गधा भी शेर हो ही जाये आख़िर. और जो नही हुआ तो कम से कम दुलत्ती तो मारेगा। अपने नेताजी तो इसके लिए भी प्रतिबद्ध होंगे पहले और फिर एक कमेटी बनायेंगे जब तक अगला बम ना फटे.अब इतने मंत्रि हैं सबको १०-१५ कमेटी कि मेम्बेर्शिप तो चाहिऐ ही, तो जितने ब्लास्ट होने है इस बार करा ही डालिये जनाब क्यूंकि जब अपनी मासूम संतान को स्चूल के लागाह मुर्दाघर मे लेने कोई बाप जाता है तो उसके मन मे एक सवाल ज़रूर उठता है॥


यही है अपनी आजादी? यही अपनों का भारत है?
यही गाँधी का सपना था,यही सपनो का भारत है?
रामलाल जी को मेरी शुभकामनाये कि वो अपनी मुराद जल्दी पूरी कर ले, क्यूंकि जिस तरह से people's represenatives उनकी मौजूदगी को नकार अधिनायकवाद कि ओर बढ रहे हैं, शायर कि आवाज़ कि गूँज तेज़ होती जा रही है।
ये संसद कुछ नही बस एक कवायद है लुटेरों की,
हमारे फैसले सड़कों पे होंगे वक़्त आने दो।

haasya

3 comments:

विशाल सिंह said...

रामलालजी को भले ही कोई कुछ कह ले उनके गधे बेचारे की क्या गलती है. मंत्री बनकर चारा खायेगा तो अपना धरम ही निभायेगा. यहां तो पता नहीं क्या क्या पच जाता है.

Nishikant Tiwari said...

दिल की कलम से
नाम आसमान पर लिख देंगे कसम से
गिराएंगे मिलकर बिजलियाँ
लिख लेख कविता कहानियाँ
हिन्दी छा जाए ऐसे
दुनियावाले दबालें दाँतो तले उगलियाँ ।
NishikantWorld

Singh is kinng said...

plz add my link...I will add yours