Friday, November 9, 2018

आयी यूँ मौज

नवंबर का महीना शायद उतनी तारीफ़ नही पाता जितना बसंत, शिशिर, या वर्षा के महीने पाते हैं।
दीवाली हो गयी, अब देव दीपावली की बारी है।
सृजन, भक्ति, बलिदान और राजतिलक के बाद नवंबर के महीना छूटे हुए साथियों, गुज़रे हुए रास्तों से शांति, विनय की  सीख सुनने का है।
नवंबर में क्रिकेट और चुनाव दोनो अच्छे होते हैं।
लोग धूप में निकलने से डरते नहीं, रात इतनी ठंडी नहीं कि चाँद देखना सिर्फ मजबूरी हो किसी पागल आशिक़ की, और कतार में खड़े रहना उतना बुरा नहीं लगता।
नवंबर साल की उम्र में रिटायरमेंट से पहले वाले सफेद बालों जैसे होता है जिसमे जीने की इज़्ज़त तो है पर दया आना अभी बाक़ी है।
सर्वम सखे चारुतरं वसंत कहने से पहले पूस की रात आती है, नवंबर से पहले दुख, सुख, नज़दीकी की पसंद या बेपसन्द उमस वाला अक्टूबर होता है।

नवंबर में गंगा के किनारे आकाशदीप जलाने और देखने वालों का जमघट हर साल आशाएं आंखों में भर कर जाता है कि जो जिये और जो जियेंगे उनका जीवन सम्पूर्ण होगा।
 प्रचंड वायु के बीच, स्नेह की आशा से मुक्त आकाशदीप शायद धर्म या विचार के नशे में में डूबे शायद भीष्म जैसे अमरत्व का त्याग कर मुक्ति की राह देखते हैं।
दिए जलते हैं, हल्कू पूस की रात का सिर्फ पुआल के सहारे स्वागत करता है, नवंबर और ज़िन्दगी कुछ हद तक इसलिए खूबसूरत है।



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