पहली शुरुआत बड़ी आनंदकर होती है। यह पहली शुरुअल क्या है?
क्या कभी किसी ने दूसरी शुरुआत कि है? गुणीजन आपत्ति करेंगे, तो भाई ये तो बातें कहने का तरीका है, और ग़लत तरीका भी आख़िर एक तरीका तो होता ही है।
तो पहली शुरत बड़ी आनंदकर होती है, और ग़लत शुरुआत का तो मज़ा ही कुछ और है। अब सही शुरुआत से बाजी जीत गए तो मज़ा क्या? यूँही नही राम जी जंगल वगैरह कि सैर करके, सीता जी को कन्द मूल खिला के, याने १४ साल लंबी पिकनिक मन के फिर रावण को मारने गए थे।
भगवान् बल से नही, संघर्षों मे हार ना मानने , जीतने , सच के लिए पराजय या मृत्यु के पाश से जीवन खीच लाने वाले जीवट से बनाते हैं। पानी पर तो बहुत चले, सलीबो पर भी बहुत लटकाए गए, पर मृत्यु , पीड़ा से जीवन और आनंद का सोमरस खीचने क्राइस्ट एक ही हुए।
तो मित्रों कोशिश यही है कि सही परिणाम ग़लत शुरुआत का बंधक न होने पाए । [
रूह घायल है मेरी, सपने मेरे जिंदा हैं
जिस्म हारा है मगर दिल तो नही हारा है।
वास्ता दो ना सफीने का मुझे ए माझी
फिर हवादिस ने मेरे ज़र्फ को ललकारा है।
3 comments:
स्वागत है आपका..देखा आप अंग्रेज़ी में लम्बे समय से लिख रहे हैं.. हिन्दी की शुरुआत शुभ हो.. बस थोड़ा वर्तनी का ख्याल रखें..
स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में, उम्मीद है निरंतर लिखते रहेंगे।
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